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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

4. कलावाद

प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

प्रस्तावना-कलावाद 'कला कला के लिए' (Art for art's sake ) मान्यता पर आधारित कला के प्रति एक दृष्टिकोण विशेष जिसे लेकर 1९वीं शताब्दी के दौरान यूरोप में व्यापक वाद विवाद छिड़ गया था। कलावाद को साहित्य एवं कला के क्षेत्र में उपयोगितावाद के विलोम के रूप में जाना जाता है।

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन विक्टर कूजे ने 1818 में किया। इसके अनुसार कला का उद्देश्य किसी नैतिक या धार्मिक उद्देश्य की प्राप्ति नहीं बल्कि स्वयं अपने पूर्णता की तलाश है। कला सौन्दर्यानुभूति का वाहक है इसलिए इसे उपयोगिता की कसौटी पर नहीं परखा जाना चाहिए। समाज, नीति, धर्म, दर्शन आदि के नियमों का पालन कला की स्वच्छंद तथा स्वतः स्फूर्त अभिव्यक्ति में बाधक होते हैं।

कलावाद का परिचय - कलावादियों के अनुसार कलाकार लोकोत्तर प्राणी, कला लोकातीत वस्तु तथा कलाजन्य आनंद अलौकिक आस्वादयुक्त एवं समाज निरपेक्ष होता है। इसके विपरीत उपयोगितावादी कला को न केवल समाज की मनोवृत्तियाँ परिवर्तित करके वांछित दिशा की ओर अग्रेसारित करने का सशक्त साधन मानते हैं, अपितु उसे सिद्धान्त प्रचार का सर्वोत्तम माध्यम भी बताते हैं। उपयोगितावादियों ने कलावादियों पर संकीर्ण एवं व्यक्तिनिष्ठ होने का आरोप लगाते हुए कहा है, वे वायवीय घोड़े पर आरूढ़ हैं। कलावादियों ने उपयोगितावादियों पर स्थूल सामाजिकता का आग्रही होने का लांछन लगाया और कहा, उन्होंने हमें स्वर्ग देने का वचन दिया था लेकिन दिया है रूग्णालय/ विचारकों का एक तीसरा वर्ग भी है जो कलावाद के व्यक्तिपक्ष और उपयोगितावाद के समाजपक्ष के समन्वय को हितकर मानता है।

कलावादी दृष्टिकोण - कलावादी दृष्टिकोण की प्रत्यक्षा प्रत्यक्ष सत्ता यूरोप में प्लेटो तथा अरस्तू से लेकर आज तक किसी न किसी रूप में लगातार मिलता। प्लेटो ने अपने ग्रन्थ 'रिपब्लिक' में कवियों और कलाकारों को राष्ट्र बहिष्कृत कर देने की व्यवस्था दी है; कारण, उनकी दृष्टि में कल्पनाशील कलाकारों एवं कवियों का असीम प्रभाव नैतिक एवं सामा. जेक दृष्टि से अवांछनीय था। अरस्तू ने यद्यपि अपने गुरू प्लेटो की नैतिक एवं सामाजिक धारणा का खुले रूप में खण्डन नहीं किया हैं. साथ ही कला में नैतिक तत्त्व तथा उपदेशात्मकता भी उन्हें अमान्य नहीं किया है, तो भी प्रसिद्ध कला समीक्षक बूचर के मतानुसार अरस्तू ने ही पहले पहल कलाशास्त्र ने नीतिशास्त्र को पृथक किया और बताया कि परिष्कृत आनंदानुभूति ही काव्यकला अथवा कला का चरम लक्ष्य होता है। रोम के प्रसिद्ध विचारक सिसरो ने शलीनता ( डेकोरम) तथा उदात्तता ( सब्लाइमनेस) को कला का प्रमुख प्रतिपाद्य निर्धारित किया है। लोगिनुस ( लांजाइनस) ने अपनी कृति 'पेरिइप्सुस' में कला को न केवल शिक्षा और मनोरंजन से भिन्न एवं श्रेष्ठ माना है बल्कि उसे संप्रेरणा के उच्च धरातल पर प्रतिष्ठत करके, उसके स्वतन्त्र मूल्यांकन का परामर्श भी दिया है। लोगिनुस के अनुसार काव्य तथा कला का मुख्य तत्त्व उदात्त (द्रव) है और भावना का उदात्तीकरण ही उनका प्रधान परिणाम होता है जिसका व्यक्ति से भी और समाज से भी सीधा सम्बन्ध रहता है। अतः अपने वक्तव्य और प्रतिपादन में लोंगिनुस निश्चित ही मध्यमार्गी हैं। डायोनीसिस तथा डिमेट्रियस प्रभृति अन्य अनेक रोमन विचारकों ने काव्य तथा कला के शैलीपक्ष पर ही विशेष जोर दिया है।

कलावाद का पल्लवन - यूरोप की शास्त्रीय या क्लासिकल कला का पल्लवन अधिकांशत: ईसाई धर्म अथवा 'चर्च' के संरक्षण में हुआ। अतः सातवीं से 15वीं शती ईसवी के बीच रोम को केन्द्र मानकर जिस बैजंतिया (बाइजैंटाइन अर्थात् रोम साम्राज्य में विकसित शैली) कला का विकास मिस्र में रूस तक हुआ, वह चर्च आश्रित होने के कारण नैतिक-धार्मिक मूल्य समन्वित था, अतः उसका सोद्देश्य तथा उपदेशात्मक होना जरूरी था और इसीलिए उसमें कलापक्ष गौण ही रहा। तो भी ऐसी नहीं है कि उक्त काल की कला में कल्पना तथा भावनाओं के लिए कोई छूट थी ही नहीं। इसके विपरीत धार्मिक दृष्टिसम्पन्न कलाकार बिना किसी बाहरी नियन्त्रण अथवा बाध्यता के उच्च कोटि की कला का सृजन करते थे। टाल्स्टाय (1828-1९10 ई0) कलावादी विचारधारा के प्रबल विरोधी थे। उनके मत से धर्म के प्रति विश्वास का अभाव ही कलावादी विचारों को जन्म देता है और कला का साध्य न आनंद है, न ही सौन्दर्य। वे नैतिकता के प्रति अत्याग्रही थे और गांधी जी की तरह उनका दृष्टिकोण सुधारवादी था। सुधारवाद प्रकारांतर से उपयोगितावाद ही है। अतः टाल्स्टाय के लिए कला निश्चित ही एक गौण साधन मात्र रहा।

कलावाद की प्रतिष्ठा - इटली के महान् कवि आलीग्यारी दांते (1265 - 1321ई0) ने कला के क्षेत्र में पुनः उदात्त गुणों एवं भव्य शैली की प्रतिष्ठा की। दांते का प्रभाव कुछ ही दिन रहा। पश्चात शास्त्रीय दृष्टि धीरे-धीरे रूमानी दृष्टिकोण से आच्छादित होने लगी। फलतः इस समय कला सम्बन्धा मूल्यों में भारी परिवर्तन हुआ। 17वीं शताब्दी को कला की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है। इसके दौरान फ्रांस में नव्यशास्त्रवाद ( नियोक्लासिसिज्म) का उदय हुआ। लेकिन यह भी मध्यकालीन चिंतन के नवीन संस्करण से अधिक नहीं था।

रेनेसाँ (1453 ई0 ) के बाद यूरोप में मध्यकालीन नैतिक मूल्यों का विघटन होना शुरू हुआ जिससे परम्परावादी तथा स्वायंतन्त्र मूलक विचारों के बीच अस्थिरता का वातावरण ही उत्पन्न नहीं हुआ। बल्कि परस्पर टकराव भी होने लगा। इसका कारण इस समय किसी सुदृढ़ दर्शन का अभाव था। सन् 1866 ई0 के लगभग विविध साहित्यिक एवं कला सम्बन्धी वादों के प्रवर्तन में आग्रही देश फ्रांस में 'ल आर्त पोर ल आर्त' सूत्रकथन सामने आया जिसका अंग्रेजी अनुवाद 'आर्ट फॉर आर्ट्स सेक' है और हिन्दी में जिसे 'कला कला के लिए' वाक्यांश से जाना जाता है। यहीं से कलावादी विचारधारा का प्रत्यक्ष आरम्भ माना जा सकता है। अमरीकी चित्रकार जेम्स एबॉट मैकनील ह्वीस्लर (1834 - 1९03 ई0), जो आजीवन फ्रांस और इंग्लैण्ड में कार्यरत रहा, कलावाद का प्रबल समर्थक बना हुआ यह कि 1877 ई0 में ग्रॉसवेनर चित्रकला प्रदर्शनी में अंग्रेजी के प्रख्यात समालोचक रस्किन ने ह्वीस्लर के चित्रों की तीखी आलोचना की और कहा, ह्वीस्लर अपने चित्रों के माध्यम से दर्शकों के चेहरों पर रंगभरी प्यालियाँ उड़ेल देता है। रस्किन के इस कथन पर अदालत में मुकदमा शुरू हो गया जिसमें ह्वीस्लर को अंततः क्षतिपूर्ति के रूप में एक फादिंग ( इंग्लैण्ड में प्रचलित सबसे छोटा सिक्का) मिला। इसके बाद भी कला के उद्देश्य को लेकर रस्किन और हीस्लर के बीच वाद विवाद चलता रहा। रस्किन कला को नैतिकता से अलग-थलग बिल्कुल स्वतन्त्र एवं स्वत: पूर्ण मानता था। इसी से प्रेरित होकर ह्वीस्लर ने अपनी पूरी शक्ति से 'कला कला के लिए' मत का प्रवर्तन किया जो अतिवाद की सीमा तक जा पहुँचा।

कलावादी विचारधारा का पोषण - ब्रेडले, क्लाइव बेल, रोजर फाइ तथा जॉर्ज इन्नेस इत्यादि प्रमुख समालोचक कलावादी विचारधारा के प्रबल पोषक थे। ब्रेडले (1851-1९34 ई0) ने तो अपने ग्रन्थ 'पोएट्री फॉर पोएट्रीज़ सेक' (1९01 ई0) में स्पष्ट रूप से घोषणा की कि नैतिकता कविता का मात्र बाह्य पक्ष है। अतः कविता की श्रेष्ठता के लिए उसे अनिवार्य मानना एकदम बेसूझ हैं। क्लाइव बेल ने आधुनिक चित्रकला के सन्दर्भ में रूपतत्व को प्रमुख माना और 1९14 ई0 में 'सिगनिफ़िकेट फ़ार्म' का सिद्धानत प्रस्तुत किया जिसका पुनराधान रोजर फ़ाई ने 1९20 ई0 में किया। क्रोचे (1866- 1९52 ई0) के अभिव्यंजनावाद से कलावाद को एक सुस्पष्ट दार्शनिक आधार प्राप्त हो गया। कांट ( 1724- 1804 ई0) की स्थापना 'सौन्दर्य का कोई बाहय अस्तित्व नहीं है' को आधार बनाकर क्रोचे ने अपने 'ला स्पिरितो' (1९03 - 1९0९ ई0) नामक ग्रन्थ में सौन्दर्यबोध के लिए 'अन्त: प्रज्ञा' (इनट्यूशन) की सत्ता का प्रतिपादन किया और बताया कि सौन्दर्य सृष्टि तथा सौन्दर्यानुभूति दोनों ही सूक्ष्म मानसिक व्यापार हैं। साथ ही वर्ण्यवस्तु तथा अभिव्यंजना के बीच तात्विक एकता होती है। अतः कलापक्ष और वस्तुपक्ष को विच्छिन्न करके देखना भ्रामक है। क्रोचे के अनुसार कला मूलतः एक आध्यात्मिक क्रिया है, इसलिए उसकी दृष्टि में अभिव्यंजना के अतिरिक्त कला का कोई अन्य उद्देश्य अथवा प्रयोजन नहीं होता। इतना ही नहीं, क्रोचे ने कला को नैतिक किंवा शैक्षणिक सीमाओं से मुक्त भी माना है।

देखा जाए तो क्रोचे के सिद्धान्त द्वारा एक प्रकार से उपयोगितावादी मान्यता का खण्डन हो जाता है, लेकिन उक्त सिद्धान्त कला के अमूर्त व्यापार पर ही लागू होता है, मूर्त पर नहीं। क्रोचे का कला सिद्धान्त तत्वत: समाज विरोधी नहीं है क्योंकि मूर्त होने पर वह भी कला को समाज निरपेक्ष नहीं मानता। फ्रायड के 'स्वप्नवाद' से भी कलावादी दृष्टि को काफी बल मिला। आई0ए0 रिचर्ड्स ने अपनी पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑव लिटरेरी क्रिटिसिज्म' (1९24 ई0) में कलावादी दृष्टि का खंडन सैद्धान्तिक आधार पर करते हुए प्रेषणीयता को काव्य प्रक्रिया में विशेष महत्त्व प्रदान किया तथा कहा कि काव्य की सत्ता शेष जगत् से भिन्न नहीं है और न ही काव्य की अनुभूति शेष जगत् की अनुभूति से भिन्न है। इस प्रकार रिचर्ड्स ने कला के क्षेत्र में उपयोगितावाद की पुनः प्रतिष्ठा की।

कलावादी मान्यताओं का विघटन - मार्क्सवाद के उदय के साथ कलावादी मान्यताओं का तेजी से विघटन हुआ। मार्क्स ने अपने अर्थशास्त्र में कला के प्रति उपयोगितावादी दृष्टिकोण अपनाया और कहा कि कला जनता के लिए मुख्यतः सैनिकों और श्रमिकों के लिए ही है। स्टालिन ने रूस मे और माओं ने चीन में कला तथा साहित्य को राजनीति के प्रचार का प्रमुख साधन माना एवं उस पर राजशक्ति का अंकुश लगा दिया। माओ ने प्राब्लम्स ऑव आर्ट ऐंड लिटरेचर' शीर्षक अपने परिपत्र में मार्क्स की उपर्युक्त स्थापनाओं के प्रति आस्था व्यक्त की है। मार्क्सवादी समालोचक कॉडवेल ने भी कलावादी विचारधारा को विशुद्ध बुर्जुआ दृष्टि से उत्पन्न कुत्सित वृत्ति का परिणाम बताया है। मार्क्सवादी खेमे में ट्राटस्की ही एक ऐसा व्यक्ति है जो कला के क्षेत्र में राजनीतिक पार्टी के हस्तक्षेप को अनुचित मानता है। 'लिटरेचर ऐंड रिवोल्यूशन' नामक अपने ग्रन्थ में उसने स्पष्ट कहा है, कला के क्षेत्र में पार्टी को आदेश देने की आवश्यकता नहीं है। यह ठीक है कि पार्टी के कर्तव्यों में कला की रक्षा और उसकी सहायता करना भी है, लेकिन नेतृत्व उस क्षेत्र में अपरोक्ष रूप से ही हो सकता है। इधर आई0पी0 पावलोव आदि विद्वानों द्वारा प्रस्तुत शरीर क्रिया - मनोविज्ञान सम्बन्धी उच्च अध्ययन द्वारा अन्तिम रूप से निर्णय हो गया है कि कला भी व्यक्ति एवं समाज के लिए उतनी ही उपयोगी है जितने अन्य सामान्य भौतिक उपादान होते हैं।

भारतीय साहित्य में कलावाद - भारतीय साहित्य में भी अलंकार, रीति, वक्रोक्ति आदि से सम्बन्धित अनेक ऐसे सम्प्रदाय रहे हैं जिनकी दृष्टि में कलापक्ष अधिक महत्वपूर्ण था। हिन्दी के आधुनिक साहित्य में प्रेमचन्द, दिनकर आदि उपयोगितावादी थे तो प्रसाद ने आनंदवादी दृष्टि अपनाई जो कलावाद के अधिक निकट है। अज्ञेय, महादेवी वर्मा आदि कलावादी हैं तो आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ0 हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ0 रामविलास शर्मा आदि आलोचकों की दृष्टि विशुद्ध उपयोगितावादी है। डॉ0 श्यामसुन्दर दास साहित्य में कलावाद एवं उपयोगितावाद के समन्वित रूप को ही उत्तम और श्रेयस्कर मानते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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